पुष्प जो लगा बालों मैं
तो किसी का श्रृंगार बन गया,
अगर गया किसी मंदिर मैं
तो पूजन का आधार बन गया,
धागे में पिरोया
तो किसी का सम्मान बन गया,,
और खुद को बिखेर कर
मुक्ति यात्रा का हमराह बन गया,,
पर हर इंसान को कहाँ
ऐसा सुख मिल पाता है,,
कोई गुलाब की तरह
सुशोभित होकर जीता है
और कोई कांटे की तरह
पुष्प को एकटक देखता है
और उसी की चाहत मैं
जहाँ से रुखसत हो जाता है
जीत_इन्दौरी
तो किसी का श्रृंगार बन गया,
अगर गया किसी मंदिर मैं
तो पूजन का आधार बन गया,
धागे में पिरोया
तो किसी का सम्मान बन गया,,
और खुद को बिखेर कर
मुक्ति यात्रा का हमराह बन गया,,
पर हर इंसान को कहाँ
ऐसा सुख मिल पाता है,,
कोई गुलाब की तरह
सुशोभित होकर जीता है
और कोई कांटे की तरह
पुष्प को एकटक देखता है
और उसी की चाहत मैं
जहाँ से रुखसत हो जाता है
जीत_इन्दौरी